हिंदुस्तान के अज़ीम बुज़ुर्ग   हजरत मसीउल्लाह  ख़ान शेरवानी जलालाबादी (रह.)


हिंदुस्तान के अज़ीम बुज़ुर्ग
  हजरत मसीउल्लाह  ख़ान शेरवानी जलालाबादी (रह.)



जलालाबाद -शामली । 


दुनिया में इन्सान  की पैदा ईश  से लेकर आज तक हर दौर  में आदमी की इस्लाह  तरबियत (गुणकारी वयक्तितिव  संस्कार )प्राप्ति  के लिये सबसे उत्तम रास्ता  बुजुर्गों  अहले तक़वा  उलेमा की सोहबत  ऋषि मुनियों की सोहबत  इख्तियार  करना  सबसे  उत्तम एवम प्रभाव शाली  मार्ग बताया  है । ऐसे  ही लोग बकमाल साबित  हुए जो दुनिया में  भी  इज्जत  के साथ  जिंदगी  गुजारी  ऐसे  लोगों  को 


ख़ुदा /भगवान  की विशेष  कर्पा  द्रष्टि  प्राप्त  हुई  ऐसे लोगों  की जीवन शैली  समाज के लोगों के लिये आज भी  प्रेरणा स्रोत बने  हुए  है ।


ऐसे ही नुमाया  बाकमाल बुजुर्गो में जलालाबाद के हज़रत मौलाना  मसीउल्लाह  खान शेरवानी रह .(अब्बाजी  ) गुजरे  है ।हज़रत  की  पैदा ईश  ज़िला  अलीगढ़  तहसील  अतरौली  मौजा  -सराय  बरला  (आपका  आबयी  वतन ) 1929-30 में  शेरवानी  ख़ानदान  में  हुई  थी ।  जो एक ज़माने तक दवा ए  दिल  के प्यासे लोगों की प्यास बुझाने  वाले विश्व प्रसिद्ध विद्वान  हज़रत  अशरफ़  अली  थानवी  के ख़लीफ़ा हज़रत  मसीउल्लाह  शेरवानी जिनकी ख़ुसूसियात  के सेंकड़ों वाकयात  आज भी लोगों के सीनों ऒर  कागज़  के सफीनो  में महफ़ूज़  है । हज़रत  ने अपनी ज़िंदगी  अल्लाह  ओर उसके रसूल सल्ल . की रजा में ओर मखलूक ए ख़ुदा  की खिदमत  के लिये सर्फ़  कर रखी थी । अपनी वायज तकरीरों  तहरीरों  के ज़रिये इस्लाह  फ़रमाते  थे । खांकाह ए  मसीह  से दी जाने वाली  नसीहतों में चंद -इल्म हासिल करो । ज़बान  ओर दिल का ख़ास  ख़याल रखो । आपस में मत लड़ो । नमाज़  क़ायम  करो ।  किसी अजनबी (अनजान व्यक्ति ) आदमी की सोहबत  को गोया  वह  जाहीरी तौर  पर दीन दार  नज़र  आता हो .न अख़्तियार  करें । बिला तहक़ीक़  उसकी सोहबत नुकसान देय  हो सकती  है ।  जलालाबाद  का सौ  साल  कदीमी  ये इदारा जिसकी बुन याद हज़रत  थानवी  ने रखी थी इसी इदारे की 1357हिजरी  में हजरत थानवी के हुक्म  से हजरत शेरवानी ने सँभाली ओर उसे  सींचते  रहे । आपने साउथ अफ्रीका मारीशस  बर्तानिया  शाम  मिस्र  के .एस . ए आदि मुल्कों  का सफ़र  भी किया । आपके ज़माने  में  इस  इदारे  में  देश -विदेश के तल्बाओ  ने यहा से तरबियत ओर इल्मी फैज़  हासिल  किया । आपने बहुत सी  किताबें  लिखी जिनमें  शरीयत  तस्व्वूफ  इस्लाम ओर  अम्नेआम  ज़िक्र ए इलाही  जिक्र ए  नबी  मफ्लूजात दीगर  काबिल ए  ज़िक्र  है ।


आपकी  वफ़ात 13 नवम्बर 1992 जुमा  के दिन हुई । इदारे  की जिमेदारी आपके  साहबजादे  सफीउल्लाह  खान ( भाईजान )पर आ गयी  2 मार्च  2012 आपने  भी इस दुनिया  को अलविदा  कह दिया । आज इस कदीमी  इदारे  की अहम  जिम्मेदारी  हजरत के दोनों पोते हज़रत के इस गुलशन को उनके पौते   अपने  बुजुर्गों  की तालीम ओ तरबियत  के ज़ेरे  साया  फ़र्ज़  अंजाम  पेश  कर रहे है ।सैकड़ो तुलबा  इल्मी  फ़ैज़  हासिल  कर रहे है । 


आया  ही था  ख़याल  की आँखें  छलक  पड़ी । 


झौंका  ए  मसीह  इतना  शदीद  था ॥


 


रिपोर्ट- जीशान काजमी